शब्द भावों के
“शब्द” पर्याय नहीं होते “भावों” के…
हां शब्द पर्याय नहीं होते भावों के,
वेदना के बिषाद के,
हर्ष के उन्माद के…!!
शब्द रचते हैं भाषा,
लिखते हैं, हंसीं को हंसी…
आल्हाद को आल्हाद….!!
शब्द नदी की तरह होते है,
एक ही दिशा में बहने को अभिशप्त,
भाव भिगो देते हैं ब्रह्माण्ड को
आंसू को आंसू लिखने वाले शब्द,
नहीं समझ पाते उसकी आद्रता को।
और; रच देते हैं कुछ परिभाषाएं
जो ठीक वैसी नहीं होतीं, जैसे होते हैं भाव।
इस सबके बावजूद शब्द ही होते हैं माध्यम…
अभिव्यक्ति के ; संप्रेषण के।
मैंने शब्दों को कभी नहीं पाया समर्थ-सक्षम…
वो कभी नहीं दे पाए मेरे भावों को भाषा,
मैं पीडा को पीता हूं, दर्द की करता हूं जुगाली…
ये ह्रदय से निकलकर ह्रदय में ही हो जाते हैं गुम ।
क्योंकि इन भावों को कभी नहीं मिली अभव्यक्ति…
इसलिए कहता हूँ शब्द भावों के पर्याय नहीं होते…।।
#इंतेखाब_आलम_लोदी
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