समुच्चयबोधक अव्यय (व्याकरण से आंशिक)
प्रिय विद्यार्थियो!
बोधक अव्ययों की कड़ी में तीन प्रकार के अव्यय पद मुख्य रूप से आते हैं — संबंधबोधक, समुच्चयबोधक तथा विस्मयादिबोधक अव्यय। यहाँ हम समुच्चयबोधक अव्ययों के विषय में जानेंगे।
‘समुच्चय’ का शाब्दिक अर्थ है — जोड़ा। समुच्चयबोधक अव्यय जोड़ा बनाने वाले शब्दों को कहते हैं। समुच्चयबोधक भी सदा अपरिवर्तित रहते हैं। इन के स्वरूप पर लिंग, वचन, कारक, काल, देश आदि के परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
परिभाषा — जो अव्यय पद दो शब्दों, दो उपवाक्यों ( वाक्यांशों, पदबंधों आदि) तथा दो वाक्यों को परस्पर ( आपस में ) जोड़ते हैं, उन्हें समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं। ( टिप्पणी — ‘उपवाक्यों’ को ‘वाक्यांश’ तथा ‘पदबंध’ भी कहा जाता है। )
उदाहरण — १. और — मधु और सुनंदा पक्की सहेलियाँ हैं। २. तथा — संतरा तथा नारंगी एक ही फल के दो नाम हैं। ३. परंतु — ईश्वर एक है परंतु उसके नाम अनेक हैं। ४. अथवा — साकार अथवा निराकार परमेश्वर हम सब के भीतर वास करता है।
विशेष — १. समुच्चयबोधक अव्ययों को योजक अव्यय भी कहा जाता है, क्योंकि ये दो शब्दों को जोड़ते हैं। २. जब कभी दो शब्दों के बीच से योजक अव्यय को हटाया जाता है, तब उनके बीच योजक चिह्न लगाया जाता है ( – ) । उदाहरण — भाई और बहन — भाई-बहन। आज या कल — आज-कल । पाप तथा पुण्य — पाप-पुण्य । योजक अथवा संयोजक — योजक-संयोजक ।
समुच्चयबोधक अव्ययों के भेद —
१. समानाधिकरण समुच्चयबोधक — समानाधिकरण समुच्चयबोधक वे होते हैं, जो समान स्थिति के शब्दों, पदबंधों, उपवाक्यों अथवा वाक्यों को जोड़ते हैं। इस प्रकार के समुच्चयबोधक — और, तथा, या, अथवा, लेकिन, किंतु, पर, परंतु, बल्कि, अपितु, अतः, अतएव, इसलिए, चाहे, न, इससे, परिणामत:, फलस्वरूप आदि बनते हैं।
उदाहरण — १. आज की लड़कियाँ पढ़, लिख और समझ रही हैं। २. पुलिस ने केवल उसकी रिपोर्ट ही नहीं लिखी, अपितु उसकी सहायता भी की। ३. तुम चाहो या न चाहो किन्तु यह तो तुम्हें करना ही पड़ेगा। ४. भगवान शिव ने विष पीया था अतः उन्हें नीलकंठ भी कहते हैं।
समानाधिकरण समुच्चयबोधकों को आगे पुनः चार भेदों में बाँटा जाता है —
(I) संयोजक — वे अव्यय जो दो शब्दों, उपवाक्यों, वाक्यांशों तथा वाक्यों को परस्पर जोड़ते हैं — जैसे — १. गांधी जी सत्य व अहिंसा के कट्टर समर्थक थे। २. मैं बाज़ार गया और नमकीन और मिठाइयाँ लाया।
(II) विभाजक — जो अव्यय दो या अधिक शब्दों अथवा वाक्यांशों के बीच की विभिन्नता को प्रकट करते हुए उन्हें जोड़ते हैं, उन्हें विभाजक कहते हैं — जैसे — १. न सास ही चुप हो रही थी, न बहू ही चुप हो रही थी। २. मदिरा हो या धूम्रपान; दोनों स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।
(III) विरोधवाचक — जो अव्यय दो वाक्यांशों तथा वाक्यों के बीच के विरोध को प्रकट करते हुए उन्हें जोड़ते हैं, उन्हें विरोधवाचक कहते हैं — जैसे — १. हिरण्यकश्यप की ही नहीं, अपितु रावण की भी अधिक निंदा होती है। २. रजनी दूर चली गई है पर अब वह अधिक प्रसन्न है।
(IV) परिणामवाचक — जिन अव्ययों द्वारा प्रथम वाक्यांश अथवा वाक्य की स्थिति का परिणाम द्वितीय वाक्यांश अथवा वाक्य में दर्शाया जाता है, उन्हें परिणामवाचक अव्यय कहते हैं — जैसे — १. अध्यापिका अनुपस्थित थी अतः बच्चे शोर मचा रहे थे। २. पानी बार-बार गिर रहा है इसलिए बर्तन को कम भर रही हूँ।
व्यधिकरण समुच्चयबोधक — दूसरे प्रकार के समुच्चयबोधक ‘व्यधिकरण’ समुच्चय बोधक हैं। व्यधिकरण समुच्चयबोधक में कारण-कार्य संबंध स्थापित होता है। व्यधिकरण समुच्चयबोधक एक या एक से अधिक आश्रित उपवाक्यों को एक प्रधान उपवाक्य से जोड़ते हैं। इन समुच्चयबोधकों में — कि, क्योंकि, जिससे, फिर भी, ताकि, इसलिए, यदि-तो, यद्यपि-तथापि, जब-तब, जो-सो, मानो, जैसे, ज्यों, त्यों, अर्थात् आदि समुच्चयबोधक अव्यय आते हैं।
(टिप्पणी — १. इसलिए– इस समुच्चयबोधक का प्रयोग समानाधिकरण तथा व्यधिकरण दोनों रूपों में किया जाता है, जिसका निर्णय वाक्य की प्रकृति तथा अर्थ बोध से लिया जाता है।)
(टिप्पणी — २. ताकि- यह समुच्चयबोधक व्याकरणिक नहीं है। परंपरागत व्याकरण तथा मानक भाषा में इसे मान्यता नहीं प्राप्त है। यह स्थानीय बोलियों में कामचलाऊ बोलचाल का शब्द है। अतः व्याकरण में से उदाहरण देते हुए इसका प्रयोग करने से बचना चाहिए।)
उदाहरण — १. हमारे देश में लोग बेटा इसलिए चाहते हैं कि वह बुढ़ापे में उनकी सेवा कर सके। २. यद्यपि अनुज होनहार है तथापि उसमें कुछ बुरी आदतें हैं।
व्यधिकरण समुच्चयबोधक भी आगे चार भागों में बँटे हैं —
(I) कारणवाचक — इन समुच्चयबोधकों के द्वारा किसी होने वाले कार्य का कारण स्पष्ट किया जाता है। जैसे — १. समय से निकलो जिससे स्कूल पहुँचने में देरी न हो। २. पानी भर लो नहीं तो चला जाएगा।
(II) उद्देश्यवाचक — इन समुच्चयबोधकों के द्वारा दो उपवाक्यों को जोड़े जाने का उद्देश्य स्पष्ट किया जाता है। जैसे — १. दो पेन रखने चाहिए जिससे स्याही कम न पड़ जाये। २. सुबह-सुबह जाना पड़ेगा क्योंकि उसी दिन वापस भी आना है।
(III) संकेतवाचक — इन समुच्चयबोधकों के द्वारा कार्य-कारण संबंध का संकेत प्रकट किया जाता है। जैसे — १. यदि पहले इलाज कराया होता तो हालत नहीं बिगड़ती। २. जब तक गृहकार्य पूरा नहीं हो जाता, तब तक मैं भोजन नहीं करूँगा।
(IV) स्वरूपवाचक — इन समुच्चयबोधकों के द्वारा कथन का स्वरूप अथवा अभिप्राय स्पष्ट किया जाता है। जैसे — १. जैसा कि आप सबको विदित ही होगा, संपत्ति का विभाजन अनिवार्य है। २. कोरोना की वैक्सीन क्या आई मानो जन साधारण की डूबती नौकाओं को किनारा मिल गया।
इस प्रकार समुच्चयबोधक अव्यय अनेक रूपों में प्रयोग किए जाते हैं। स्थिति एवं आवश्यकता के अनुरूप एक अव्यय के अनेक भेदों में भी प्रयोग हो सकते हैं।
समुच्चयबोधक अव्ययों में यहीं तक। अधिक जानकारी के लिए विद्यार्थी कृपया उत्तम गुणवत्ता की व्याकरण पुस्तकों से पाठ देखें।
….. श्री …..
(स्वीकारोक्ति : इस अंक के लिए ली गई छवि को हमने पिक्साबे साइट से साभार उद्धरित किया है।)