स्वर संधि (व्याकरण से आंशिक)

पिछली कड़ी में हमने उपसर्ग तथा प्रत्यय की चर्चा की। आज की कड़ी में हम ‘संधि’ विषय पर कुछ चर्चा करने को प्रस्तुत हैं। यों तो ‘संधि’ – इस शब्द के भिन्न-भिन्न अर्थ हैं, जैसे– जोड़, समझौता, खोखली दरार आदि, किंतु व्याकरण के नियमों में संधि का अर्थ है– मेल। दो स्वरों का मेल ; दो व्यंजनों का मेल ; एक स्वर तथा एक व्यंजन का मेल आदि-आदि।

यदि स्वर संधि को ध्यान से समझा जाए, तो हम‌ पाएँगे कि इस संधि में गणित के नियम काम करते हैं।

स्वर संधि के भेद तथा उनके नियम :–

१. दीर्घ संधि :- दो समान स्वरों के मेल से बनने वाला नया स्वर ‘दीर्घ’ हो जाता है। जैसे– अ + अ = आ। सूर्य + अस्त = सूर्यास्त। इ + इ = ई। अभि + इष्ट = अभीष्ट। उ + उ = ऊ। सु + उक्ति= सूक्ति। अ + आ = आ। पुस्तक + आलय = पुस्तकालय। आ + अ= आ। रेखा + अंकित= रेखांकित। आ + आ = आ । दया + आनंद = दयानंद। इ + ई= ई। गिरि + ईश = गिरीश। ई+इ = ई। नारी + इंद्र = नारींद्र। ई + ई = ई। जानकी + ईश = जानकीश। उ + ऊ = ऊ। लघु + ऊर्मि = लघूर्मि। ऊ + उ = ऊ। भू + उद्धार = भूद्धार। ऊ + ऊ = ऊ। भू + ऊर्जा = भूर्जा।

२. गुण संधि :- गुण संधि में विपरीत स्वरों का मेल होता है। जैसे — अ + इ = ए। देव + इंद्र = देवेंद्र। अ + ई = ए। परम + ईश्वर = परमेश्वर। आ + इ = ए। महा + इंद्र = महेंद्र। आ + ई = ए। रमा + ईश = रमेश। अ + उ = ओ। सर्व + उदय = सर्वोदय। अ + ऊ = ओ। नव + ओढ़ा = नवोढ़ा। आ + उ = ओ। महा + उदधि = महोदधि। आ + ऊ = ओ। महा + ऊर्मि = महोर्मि। अ + ऋ = अर्। आ + ऋ = अर्। राज + ऋषि = राजर्षि। महा + ऋषि = महर्षि।

३. यण संधि :- यण संधि में विपरीत स्वरों के‌ मिलने पर अंत:स्थ व्यंजन ‘य’ तथा ‘व’ उत्पन्न होते हैं। जैसे इ+ अ = य। अति + अंत = अत्यंत। ई + अ = य। नदी + अर्पण = नद्यर्पण। इ + आ =या। अति + आनंद = अत्यानंद। ई + आ = या। नदी + आगम = नद्यागम। इ + उ = यु। प्रति + उपकार = प्रत्युपकार। इ/ई + ऊ = यू। नि + उन = न्यून। इ / ई + ए / ऐ = ये / यै। प्रति + एक = प्रत्येक। उ + अ = व। उ / ऊ + आ = वा। सु + अच्छ = स्वच्छ। मधु + आलय = मध्वालय। उ + इ = वि। अनु + इति = अन्विति। उ + ई = वी। अनु + ईक्षण = अन्वीक्षण। ऋ + अ/ आ = अर्। पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा।

४. वृद्धि संधि :- विपरीत स्वरों में से एक अथवा दोनों के दीर्घ रूप में मेल होने पर होने वाले परिवर्तन। जैसे — अ/आ + ए/ऐ = ऐ। एक + एक = एकैक। सदा + एव = सदैव। अ/ आ + ओ/औ = औ। परम + ओज = परमौज। महा + औदार्य = महौदार्य।

५. अयादि संधि :- यह संधि संस्कृत के नियमों से ओतप्रोत है। ए + अ = अय। ने + अन = नयन। ऐ + अ = आय। गै + अक = गायक। ओ/औ + अ = अव/ आव। पो + अन = पवन। पौ + अन = पावन। औ + उ = आवु । भौ + उक = भावुक।

स्वर संधि के विभिन्न नियमों का ध्यान पूर्वक अध्ययन करने से स्वरों तथा शब्दों की रचना समझने में बहुत सहायता प्राप्त होती है।

कृपया ध्यान दें :-

समान स्वर : अ-आ; इ-ई; उ-ऊ; ए-ऐ; ‌ ओ-औ।

विपरीत स्वर : अ – इ ; अ – उ ; अ – ए ; आदि तथा इसी प्रकार के अन्य मेल।

संपूर्ण जानकारी के लिए कृपया व्याकरण की पुस्तकों से पाठ को देखें।

…. श्री ….

इस अंक के लिए ली गई छवि को हमने ‘पिक्साबे’ साइट से साभार उद्धरित किया है।

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