अजातशत्रु (इतिहास के पन्नों से एक चरित्र)

Royal Procession Leaving Rajagriha

अजातशत्रु : जिसका कोई शत्रु जन्मा ही न हो !

‘अनेक शब्दों के लिए एक शब्द’ पढ़ते हुए विद्यार्थी इस शब्द का अध्ययन अवश्य करते हैं । परीक्षा में पूछा जो जाता है ।

आइए , आज अजातशत्रु के विषय में कुछ जानते हैं ।

नंद वंश के नाश के बाद जब चंद्रगुप्त मौर्य मगध के राज सिंहासन पर बैठा, तब राजगृह मगध की राजधानी थी। उसके बाद उसका बेटा बिंबिसार मगध की राजगद्दी पर आसीन हुआ। बिंबिसार के बाद उसका पुत्र अजातशत्रु मगध का राजा बना। कहते हैं कि अजातशत्रु का वास्तविक नाम क्या था, यह तो कोई नहीं जानता, परंतु अजातशत्रु का पराक्रम ही इतना था कि उससे शत्रुता मोल लेने के भय से सभी काँपते थे। कोई भी उसका शत्रु बनकर उसके सामने आना ही नहीं चाहता था। इसी कारण उसका नाम ‘अजातशत्रु’ पड़ गया। अजातशत्रु ने ‘पाटलिपुत्र’ नाम का शहर बसाया (जो बाद में बिगड़ कर ‘पटना’ हो गया और आज भी ‘पटना’ कहलाता है), और मगध की राजधानी को राजगृह से पाटलिपुत्र स्थानांतरित कर दिया। अजातशत्रु ने राजसूय यज्ञ भी किया था, जिस यज्ञ को वही राजा कर सकता था, जिसका कोई शत्रु ना होता हो, अर्थात कोई भी अन्य राजा या महाराजा उसका उससे शत्रुता ना मोल लेकर उसके आगे घुटने टेक दे। अजातशत्रु के वंश में ही आगे चलकर उसका पौत्र तथा बिंदुसार का पुत्र अशोक मगध का सम्राट बना। अशोक अपने निन्यानवे ‘अशोक’ नाम के अन्य भाइयों का वध कर सिंहासनारूढ़ हुआ । उसने असीमित राज्य विस्तार किया। भयंकर रक्तपात करता रहा। कलिंग विजय के पश्चात् जब उसे ग्लानि अनुभव हुई, तब उसने शस्त्रों का त्याग कर बौद्ध धर्म को ग्रहण कर लिया। उसने अपने पुत्र महेंद्र तथा पुत्री संघमित्रा को बर्मा, जावा, मलाया, सुमात्रा आदि देशों में भेज बौद्ध धर्म का प्रचार – प्रसार करवाया।

एक विशेष बात यह थी, कि अजातशत्रु के समय में ही बौद्ध धर्म का खूब प्रचार हो चला था। कहते हैं, उसके पिता ने भी बौद्ध धर्म स्वीकार किया था, परंतु अजातशत्रु ने कभी बौद्ध धर्म को स्वीकार नहीं किया। वह आजीवन सनातन हिंदू धर्म को ही मानता रहा। वह कठोर निरंकुश शासक अवश्य था, परंतु साथ ही एक कुशल प्रशासक भी था। उसके शासनकाल में प्रजा के सभी अधिकार सुरक्षित थे तथा नगर व्यवस्था सुदृढ़ थी।

…..श्री…..

Mallas Defending the City of Kushinagara

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