पूरे देश में एक पाठ्यक्रम, सफलता या विफलता

हाल ही के दिनों में पूरे देश में एनसीईआरटी पाठ्यक्रम को लागू करने की बात उठी है। इसे पढ़ते हुए यह विचार आता है कि क्या पूरे देश में एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम लागू करना हमारे राज्य शिक्षा तंत्र की विफलता नहीं है?

और क्या एनसीईआरटी की किताबें पढ़कर किसी भी विद्यार्थी को सर्वांगीण शिक्षा मिल पाएगी। क्या इस पाठ्यक्रम को लागू करके हम यह दावा कर सकते हैं कि जो ज्ञान उसे प्राप्त होगा, वह सही मायनों में पूर्ण होगा, जो उसे जीवन के हर मोड़ पर मदद करेगा। यहां मैं सर्वांगीण शिक्षा से बात खेलकूद या एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज की नहीं कर रहा हूं। यहां मैं सर्वांगीण शिक्षा की बात उस संदर्भ में कर रहा हूं कि छात्र को जो ज्ञान मिल रहा है वह ज्ञान क्या समुचित ज्ञान होगा।

मध्य प्रदेश के पाठ्य पुस्तक निगम की किताबों से अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त कर करने के बाद मैंने यह महसूस किया कि सिर्फ मध्य प्रदेश पाठ्य पुस्तक निगम की किताबों को पढ़ते हुए हम किसी भी तरह की मध्य प्रदेश राज्य स्तर की परीक्षा को भी उत्तीर्ण नहीं कर पाते। ऐसा नहीं है कि सिर्फ पाठ्य पुस्तक की किताबें पढ़कर ही कोई भी परीक्षा उत्तीर्ण की जा सकती है वरन् मेरा अभिप्राय ये है कि न इनका पाठ्यक्रम भविष्य की राज्य स्तर की परीक्षाओं के अनुकूल होता है और न ही इन परीक्षाओं में पूछे जाने वाले प्रश्न ऐसे होते हैं जो हमें इन्हें पढ़ने को प्रेरित करे। कमोबेश यही स्थिति अधिकतर राज्यों की है । ऐसे में जब मध्य प्रदेश पाठ्य पुस्तक निगम राज्य स्तर की ही परीक्षाओं के स्तर को पूरा नहीं कर पा रहा है तो फिर हम बाकी एनसीईआरटी से क्या की अपेक्षा कर सकते हैं। यानी किसी भी विद्यार्थी को दो दो तरह से अपनी तैयारी करनी होगी। आज भी हम देखते हैं कि सिविल सर्विसेज की परीक्षाओं के लिए एनसीईआरटी की किताबें पढ़ना जरूरी माना गया है और सभी तरह के कोचिंग संस्थान शिक्षक और सफल छात्र इस बात की पुष्टि करते हैं कि सिविल सर्विसेज या किसी भी तरह की राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं को उत्तीर्ण करने के लिए एनसीईआरटी की किताबों को सर्वप्रथम पढ़ना जरूरी है क्योंकि वह आपको प्रारंभिक ज्ञान देने में मदद करती हैं। मगर जब बात राज्य सरकार की आती है या राज्य स्तरीय परीक्षाओं की आती है तब ऐसा क्यों नहीं हो पाता?

पूरे देश में एक पाठ्यक्रम, सफलता या विफलता

यहां मैं विशेषकर सिविल सर्विसेज परीक्षा की ही बात करूंगा । जो राज्य स्तर की सिविल सर्विसेज की परीक्षाएं होती है, उसके लिए सभी छात्रों को अलग से ही तैयारी करनी होती है। सब कुछ अलग से विस्तार में पढ़ना पड़ता है। मध्य प्रदेश का इतिहास, भौगोलिक इतिहास, राजनीतिक, मध्यकालीन इतिहास और भी बहुत कुछ हैं। जब हम एनसीईआरटी की तरफ अपना रुख करते हैं तो जो शिक्षा हमें राज्य सरकार की किताबों से 50% भी मिल पाता था, वह हमें एनसीईआरटी की किताबों से प्राप्त नहीं होगा। यहां मैं एनसीईआरटी की किताबों का विरोध नहीं कर रहा हूं। एनसीईआरटी की किताबें पूरे देश को ध्यान में रखकर लिखी गई है । ये राष्ट्रीय स्तर की किताब है जहां पूरे देश को दृष्टि में रखते हुए पाठ्यक्रम रचा गया है। लेकिन इसका एक दूसरा पहलू यह भी है कि बहुत से छात्र अपने आसपास की जगह का ,अपने गांव का ,अपने जिलों का , अपने शहर का थोड़ा सा भी विस्तृत ज्ञान नहीं रख पाते हैं।

इसी के साथ मैं अपने लेख के दूसरे बिंदु पर आता हूं। जहां मैं सिर्फ प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रों के अलावा एक दूसरे वर्ग की बातें करना चाहता हूं।

भारत ग्राम प्रधान , युवा प्रधान देश है । शिक्षा के मुख्य स्रोत आज भी राज्य शासन द्वारा स्थापित स्कूल ही हैं। जब हम उन्हें ऐसी शिक्षा प्रदान करते हैं जिस से उन्हें चाहे यह पता हो कि सुदूर दक्षिण में किसी मंदिर का निर्माण किसने करवाया था या कि सुदूर उत्तर के किसी किले का निर्माण किसने कराया था। लेकिन अपने क्षेत्रीय इतिहास से विमुख करते हैं तो हम उन्हें शनै शनै आस पास के घटनाक्रम से दूर करते जाते हैं । उन्हें दिल्ली, आगरा ,पटना, जयपुर, कोच्चि ,एलोरा, अजंता का ज्ञान चाहे हो हो सकता है, लेकिन उन्हें अपने आस पास के ही किसी भी ऐतिहासिक स्थल का समुचित ज्ञान नहीं मिल पाता है और इसमें उनका कोई भी दोष मैं नहीं मानता हूं।

मेरे हिसाब से अच्छा पाठ्य क्रम बनाने के लिए हमें राज्य स्तर पर एक अच्छा शैक्षिक तंत्र तैयार करना होगा। इस तरह कि उसमें कुछ भाग , कुछ हिस्सा या कुछ अंक अपने अपने क्षेत्र वार जिला, संभाग ,गांव, नगर के भी रखने चाहिए। इससे छात्रों को अपने आसपास की जलवायु का, अपने आसपास की नदियों, पहाड़ों, पठारों का, अपने आसपास के नगर का इतिहास, गांव का, शहर का इतिहास पता चलेगा। जब तक हम उन्हें अपने क्षेत्र के इतिहास, अपनी मिट्टी से इस तरह का जुड़ाव नहीं दे पाएंगे तब तक हमें यह कल्पना करना बेकार है कि वे अपनी आंचलिक संस्कृति , बोलियों , अपनी जड़ों से जुड़ाव महसूस कर सकें। उन्हें यह पता होना चाहिए कि वह जिस जिस जगह जिस रूप में और जिन परिस्थितियों में है, ऐसी कौन सी परिस्थितियां भूतकाल में रही हैं जिनकी वजह से आज वह इस जगह पर है। उनसे वह क्या-क्या सीख ले सकते हैं और आगे किस तरह से इन सीखों का लाभ लेकर अपने आसपास के क्षेत्रों की जानकारी प्राप्त कर उसे बेहतर बनाने में अपना निर्माण दे सकते हैं।

उन्हें पता होना चाहिए कि बीते 50 सालों में जलवायु परिवर्तन से उनके क्षेत्र पर क्या प्रभाव पड़ा है? एक सुदूर गांव के बच्चे के लिए जलवायु परिवर्तन के नाम पर यह महसूस कर पाना की ग्लेशियर पिघल रहे हैं, तापमान बढ़ रहा है, धरती गर्म हो रही है; काफी कठिन होगा। मगर हम उसे यह इस तरह से बताएं कि पिछले 50 सालों में उसके आसपास के क्षेत्रों में, गांव में और नगरों में क्या परिवर्तन आए हैं। कैसे 30 या 40 साल पहले एक नदी जो उनके क्षेत्र से बहा करती थी, वह धीरे-धीरे अब एक नाले के रूप में परिवर्तित हो गई है या नदी रह ही नहीं गई है। कैसे जिन क्षेत्रों में कभी हरे-भरे पेड़ हुआ करते थे, वहां अभी बढ़ती आबादी और बढ़ते परिवर्तनों के कारण नाम मात्र के पेड़ बचे हैं।

कैसे उनके आसपास के इलाकों ने स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया? 1857 की क्रांति में उनके आसपास के क्षेत्रों में क्या क्या घटनाएं हुई । यही बात कृषि , उद्योग और व्यापार के विषय में भी कहीं जा सकती है । इन चीजों से छात्र न सिर्फ अपने आप को पाठ्यक्रम की विषयवस्तु से जुड़ाव महसूस कर पाएंगे वरन इन चीजों को जिन्हें सामान्यतया उबाऊ माना जाता है ,वह ज्यादा बेहतर तरीके से समझ कर आस पास की समस्याओं से रूबरू होकर भविष्य में अपना योगदान दे पाएगा।

आज जो हम स्वदेशी , ग्राम स्वराज और आत्म निर्भरता की बात करते हैं उनकी शुरुआत इन्हीं बिंदुओं से होती है जहां न सिर्फ शैक्षिक सुधार से नगरों की ओर पलायन कम किया जा सकता है बल्कि आस पास की समस्याओं से जुड़कर युवा एक सकारात्मक समाधान की ओर एक कदम बढ़ा सकता है ।

© अभिषेक नागर

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