‘व्याकरण से आंशिक’ की आज की कड़ी में हम क्रिया के सहायक रूप ‘वाच्य’ पर कुछ प्रकाश डालेंगे। ‘वाच्य’— ‘वाच्’ अथवा ‘वाक्’ शब्दों से उद्धरित हुआ है। ‘वाच्’ अथवा ‘वाक्’ का शाब्दिक अर्थ है — कहना। भगवत् गीता में श्रीकृष्ण तथा अर्जुन के संवादों को ‘उवाच्’ लिखा गया है — “श्रीकृष्ण: उवाच्” ; “अर्जुन: उवाच्” ।
इस प्रकार वाच्य को हम कथन के कहने का ढंग मान सकते हैं। कथन को सीधे-सीधे कहना; फिर उसी कथन को थोड़ा घुमा कर कहना; और फिर उसी कथन को अन्य पुरुष के रूप में कहना।
व्याकरण में क्रिया के जिस रूप से उसके प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष अथवा भावार्थ (आशय) रूप में होने का बोध हो, उसे वाच्य कहा जाता है। वाच्य तीन प्रकार के होते हैं —
१. कर्त्तृ वाच्य।
२. कर्म वाच्य।
३. भाव वाच्य।
१. कर्त्तृ वाच्य :- जिस वाक्य में कर्त्ता प्रमुख हो, तथा क्रिया के साथ उसका सीधा संबंध हो; लिंग, वचन, कारक व क्रिया कर्त्ता के अनुरूप चलें, वहाँ कर्त्तृ कथन अथवा कर्त्तृ वाक्य माना जाता है।
उदाहरण —
१. रोहण गृहकार्य कर रहा है।
२. दादी माँ झाग वाले जल में नहा कर आईं।
३. पक्षी वृक्ष की डालियों पर झूलते हैं।
४. हम पाँच मित्रों ने तय किया कि शाम चार बजे वाली बस से चलें।
२. कर्म वाच्य :- जिस वाक्य में कर्त्ता द्वारा कर्म को प्रमुख बना दिया जाता है अथवा जिस वाक्य में कर्त्ता आता ही नहीं है, वहाँ कर्म कथन अथवा कर्म वाच्य होता है। कर्म वाच्य में लिंग, वचन कारक, क्रिया आदि कर्म के अनुसार चलते हैं।
उदाहरण —
१. रोहण के द्वारा गृहकार्य किया जा रहा है।
२. दादी माँ के द्वारा झाग वाले जल में नहा कर आया गया।
३. पंखा चल रहा है।
४. खिलौने टूट जाते हैं।
३. भाव वाच्य :- जिस वाक्य में भाव की प्रधानता होती हो, वहाँ भाव कथन अथवा भाव वाच्य होता है। भाव वाच्य में लिंग, वचन, कारक, क्रिया आदि भाव के अनुरूप रहते हैं।
उदाहरण —
१. गृहकार्य करना तो बस रोहण के बस का है।
२. दादी माँ से झाग वाले जल में नहाया जाता है।
३. खिलौनों को टूट जाना ही होता है।
४. पक्षियों को तो उड़ना ही है।
वाच्य की कड़ी में बस यहीं तक। विद्यार्थी अधिक जानकारी हेतु कृपया उत्तम गुणवत्ता की व्याकरण पुस्तकों से पाठ देखें।
….. श्री ….