क्रिया विशेषण (व्याकरण से आंशिक)
पिछली कड़ियों में हमने संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण व क्रिया आदि विकारी पदों (शब्दों) को जाना। इस कड़ी में हम अविकारी शब्दों (पदों) को उठाएँगे। प्रथम अविकारी पद-रचना क्रिया विशेषण है। इसे इस प्रकार समझिए :-
परिभाषा :– वे शब्द, जो क्रिया की विशेषता बताते हैं, उन्हें क्रिया विशेषण कहते हैं।
क्रिया विशेषण अविकारी पद हैं। वाक्य में लिंग, वचन, कारक, काल आदि किसी में भी परिवर्तन होने पर ये ज्यों के त्यों रहते हैं। इनमें कोई परिवर्तन नहीं होता।
क्रियाओं की विशेषता अनेक प्रकार से बताई जा सकती है। अतः क्रिया विशेषण के भेद भी भिन्न-भिन्न होते हैं।
क्रिया-विशेषण के भेद : क्रिया विशेषण के भेद इस प्रकार हैं —
१. रीतिवाचक क्रिया विशेषण — ‘रीति’ का अर्थ है- ढंग, विधि, प्रकार, तरीका आदि। जब हम यह बताना चाहते हैं, कि क्रिया किस प्रकार या कैसे हुई, तब हम रीतिवाचक क्रिया विशेषण का प्रयोग करते हैं। जैसे — १. छात्र ध्यानपूर्वक सुनते हैं। (किस प्रकार– ध्यानपूर्वक) २. कोयल मीठा गाती है। (कैसा– मीठा) ३ . मुकुंद चुपचाप रहता है। (किस प्रकार– चुपचाप) ४. तनुश्री एकाएक आ गई। (किस प्रकार– एकाएक)
२. कालवाचक क्रिया विशेषण — ‘काल’ का अर्थ है– ‘समय’। जब हम यह बताना चाहते हैं कि क्रिया कब हुई, तब हम कालवाचक क्रिया विशेषण का प्रयोग करते हैं। जैसे — १. तीखी धूप सुबह से निकली हुई है। (कब से — सुबह से) २. अनि कल जाएगा। (कब — कल) ३. शिवजी की पूजा सोमवार को होती है। (कब — सोमवार को) ४. नदियाँ निरंतर बहती हैं। (कब– निरंतर)
कालवाचक क्रिया विशेषण निम्न भिन्न रूपों में भी जाना जाता है–
I. कालबिंदुवाचक — आज, कल, परसों, अब, जब, तब, अभी, कभी, प्रातः, सायं, पश्चात्।
II. अवधिवाचक — आजकल, दिनभर, सदैव, नित्य, सदा, लगातार, निरंतर, हमेशा
III. बारंबारतावाचक — प्रतिदिन, रोज़, हर दिन, हर बार, बहुधा, अक्सर, हर वर्ष, प्रतिवर्ष।
३. स्थानवाचक क्रिया विशेषण — ‘स्थान’ के अर्थ से सभी परिचित हैं। जब हम यह बताना चाहते हैं कि क्रिया कहाँ हुई; किधर हुई; तब हम स्थानवाचक क्रिया विशेषण का प्रयोग करते हैं। जैसे — १. तनवी इधर ही आ रही है। (कहाँ — इधर ही) २. परीक्षा कक्ष नीचे बनाया गया है। (कहाँ — नीचे) ३. भगवान सर्वत्र वास करते हैं। (कहाँ — सर्वत्र) ४. स्वीडन, नाॅर्वे आदि ध्रुवीय प्रदेश धरती के उत्तरी छोर पर स्थित हैं। (कहाँ — उत्तरी छोर पर)
स्थानवाचक क्रिया विशेषण निम्न रूपों में भी जाना जाता है — I. स्थितिवाचक — यहाँ, वहाँ, जहाँ-तहाँ, आस-पास, आर-पार, चारों ओर, दोनों ओर, नीचे, ऊपर, मध्य, बीच में, बीचों-बीच, आगे-पीछे, पास, दूर, अंदर, बाहर, भीतर, प्रत्यक्ष, सामने आदि।
II. दिशावाचक — इधर, उधर, आमने-सामने, ऊपर, नीचे, दाहिने-बाएँ, की ओर, जिधर, पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण आदि।
४. परिमाणवाचक क्रिया विशेषण — ‘परिमाण’ का अर्थ है — ‘मात्रा’। जब हम यह बताना चाहते हैं कि क्रिया कितनी हुई; कम हुई या अधिक हुई; क्रिया की मात्रा कितनी थी ? तब हम परिमाणवाचक क्रिया विशेषण का प्रयोग करते हैं। जैसे — १. बच्चे खूब खेलते हैं। (कितना खेलते हैं ?– खूब) २. उतना लो, जितना खा सको। (कितना लो ?– उतना / जितना) ३. कोरोना संक्रमण अधिक फैलता जा रहा है। (कितना फैलता..?– अधिक) ४. आप समयानुसार पर्याप्त बोलते हैं। (कितना बोलते ?– पर्याप्त)
परिमाणवाचक क्रिया विशेषण निम्न रूपों में भी जाना जाता है– I. अधिकतावाचक — अधिक, ज़्यादा, ख़ूब, बहुत आदि।
II. न्यूनतावाचक — कम, थोड़ा, ज़रा, मात्र आदि।
III. पर्याप्तवाचक — काफ़ी, पर्याप्त, बहुत आदि।
IV. तुलनावाचक — उतना, जितना, इतना, से अधिक आदि।
V. श्रेणीवाचक — बारी-बारी से, क्रम से आदि।
एक ही वाक्य में एक से अधिक क्रिया विशेषणों का प्रयोग — १. आज से सब बाहर बैठ कर खूब धीमे-धीमे व्यायाम करेंगे। २. बंदर ने पीछे से ऊपर जाकर उछल-कूद कर बहुत उधम मचाया।
संज्ञा अथवा विशेषण रूप में क्रिया विशेषण :
१. रीतिवाचक — १. गायक फटे बाँस-सा गा रहा था। (फटे बाँस-सा) २. आज के गायक हृदय से नहीं, गले से गाते हैं। (गले से) ३. सुरों की साधना कर ही सुरीला गाया जा सकता है। (सुरीला) ४. अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए मन लगाकर पढ़ो। (मन लगाकर)
२. कालवाचक — १. मुख्य विषयों को सोमवार से शुक्रवार तक पढ़ाया जाता है। (सोमवार से शुक्रवार तक) २. ताउते चक्रवात ने सप्ताह भर विनाशलीला रचाई। (सप्ताह भर) ३. तटीय प्रदेशों को प्रति वर्ष समुद्री चक्रवातों को झेलना पड़ता है। (प्रति वर्ष) ४. मेरी कार्यशाला प्रातः आठ बजे आरंभ होगी। (प्रातः आठ बजे)
३. स्थानवाचक — १. बिट्टो ने नूडल्स कढ़ाई में बनाए। (कढ़ाई में) २. मनु को घोड़ों पर चढ़ना पसंद था। (घोड़ों पर) ३. आठवीं कक्षा में शांति है। (आठवीं कक्षा में) ४. बड़े लोग बड़ी कुरसी पर बैठते हैं। (बड़ी कुरसी पर)
४. परिमाणवाचक — १. हाथी गजभर चला। (गजभर) २. थालीभर खाते हो; हाथ नहीं चलाते। (थालीभर) ३. इस मैदान को दस-बारह फुट खोदना पड़ेगा। (दस-बारह फुट) ४. इसे एक मारो। (एक)
विशेषण तथा क्रिया विशेषण में अंतर —
१. विशेषण संज्ञा व सर्वनाम की विशेषता बताते हैं। क्रिया विशेषण क्रिया की विशेषता बताते हैं।
२. विशेषण गुण-दोष, रूप-रंग, आकार-प्रकार आदि का वर्णन करते हैं। क्रिया विशेषण गति, चेष्टा, समय, स्थान आदि का वर्णन करते हैं।
३. विशेषणों की तीन अवस्थाएँ होती हैं। क्रिया विशेषण एक ही अवस्था में रहते हैं।
४. विशेषण संज्ञा के विकारों के अनुसार परिवर्तित होते हैं। क्रिया विशेषण अविकारी पद हैं। ये सदा अपरिवर्तनीय हैं।
५. नैना सुंदर लड़की है। वह अति सुंदर लिखती है।
क्रिया विशेषण में यहीं तक। विद्यार्थी अधिक जानकारी के लिए कृपया उत्तम गुणवत्ता की व्याकरण पुस्तकों से पाठ देखें।
…. श्री ….
इस अंक में दिया गया छाया चित्र पिक्साबे साइट से साभार उद्धरित है।