तारीफ़ तुम्हारी (कविता – साॅनेट )

हम जिससे भी बात करते हैं,

वो तारीफ़ तुम्हारी करता है।

उसी तारीफ़ में बँधकर ,

हम भी खिंचे चले आते हैं।

सच!!!

तारीफ़ के तुम काबिल हो,

तारीफ़ ने तुमको पाया है।

दुआ यही हम करते हैं,

तारीफ़ तुम्हारा साया हो।

हर मौके-दर-मौके पर,

तारीफ़ ने तुमको पाया हो।।

तुम नहीं!! ‌‌‌‌‌ तुम नहीं!!

तारीफ़ तुम्हारे काबिल हो,

पाकर तुमको हम साये में,

तारीफ़ तुम्हारी कायल हो।।

यह 14 पंक्तियों की साॅनेट कविता हम अपने प्रेरणास्रोत महामनीषी को समर्पित करते हैं।

…. श्री ….

कविता के साथ दी गई छवि पिक्साबे‌ साइट से साभार उद्धरित है।

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