व्याकरण से आंशिक ( क्रिया )

पिछली कड़ी में हमने विशेषणों पर चर्चा की थी। आज की कड़ी में हम क्रिया के कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डालेंगे। ‘क्रिया’ शब्द संस्कृत भाषा की ‘कृ’ धातु से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है — गतिशील। अर्थात् हिलने-डुलने, अपने स्थान से हटने, भाँति-भाँति के कार्य करने को क्रिया कहा जाता है। चूँकि स्वयं अपने स्थान को छोड़कर केवल सजीव प्राणी ही हिलडुल सकता है। अतः क्रिया सजीव प्राणियों के कार्यों के लिए प्रयोग होती है। यदि थोड़ा ध्यानपूर्वक समझा जाए, तो अत्यंत लघु जीवों को ‘कीड़ा’ कहा जाता है ; बालकों की शारीरिक गतिविधियों को क्रीड़ा कहा जाता है। इस प्रकार क्रिया का अर्थ हुआ– कार्य अथवा करना।

व्याकरण के नियमों के अनुसार वाक्य में जिन पदों ( शब्दों ) से कार्य के किए जाने अथवा होने का बोध हो, उन्हें क्रिया कहते हैं। वाक्य में क्रिया के साथ जुड़े अंग इस प्रकार हैं– कर्ता , कर्म।

कर्ता :- वाक्य में क्रिया को पूरा करने वाला पद कर्ता कहलाता है। साधारण भाषा में कहें तो कार्य को करने वाला कर्ता कहलाता है। प्रत्येक वाक्य में कर्ता क्रिया से जुड़ा संज्ञा या सर्वनाम ही होता है। उदाहरण :- ‌‌बच्चे पढ़ते हैं। उन्होंने पूरा पाठ पढ़ लिया। इन दोनों वाक्यों में ‘बच्चे’ तथा ‘उन्होंने’ क्रिया को पूरा कर रहे हैं। अतः ये‌ दोनों पद कर्ता हैं।

कर्म :- वाक्य में होने वाला मुख्य कार्य, जो क्रिया को पूरा करता है, कर्म कहलाता है। कर्म केवल संज्ञा पद ही होता है। उदाहरण :- बच्चे पाठ पढ़ते हैं। वाक्य में ‘पाठ’ – पढ़ते हैं – क्रिया को पूरा करता है। अतः ‘पाठ’ कर्म है। इसी प्रकार – पक्षी दाना चुगते हैं। – दाना । मैंने दवाई खाई। – दवाई ।

प्रत्येक वाक्य में कर्ता व कर्म अत्यंत महत्त्वपूर्ण होते हैं। कर्म होने अथवा न होने के आधार पर क्रिया को दो भागों में बाँटा गया है।

१. अकर्मक क्रिया :- ‘अ’ का अर्थ है– अभाव या नहीं। इस प्रकार ‘अकर्मक’ का अर्थ हुआ– कर्म का अभाव अर्थात् कर्म न होना। जिस क्रिया के साथ कर्म न जुड़ा हो तथा क्रिया सीधे कर्ता से जुड़ी हो, उस क्रिया को अकर्मक क्रिया कहते हैं। उदाहरण — बच्चा सो रहा है। हाथी तेज़ चलता है।

अकर्मक क्रिया के दो प्रकार होते हैं– १. पूर्ण अकर्मक २. अपूर्ण अकर्मक।

पूर्ण अकर्मक — हँसना, रोना, चलना, उठना, बैठना, दौड़ना, भागना, जागना, सोना आदि विभिन्न क्रियाएँ पूर्ण अकर्मक हैं, क्योंकि इनके साथ कर्म की कोई आवश्यकता नहीं होती। उदाहरण — तुम हँसते‌ हो।

अपूर्ण अकर्मक — लिखना, पढ़ना, गाना, सुनना, बोलना, खाना, देना, लेना, मलना आदि क्रियाएँ ऐसी क्रियाएँ हैं, जिनके साथ जब कर्म जुड़ा होता है, तब तो ये पूर्णतः सकर्मक होती हैं, परंतु यदि इनका प्रयोग कर्म के बिना किया जाय, तो इन्हें अकर्मक भी समझा जाता है। अतः ये सभी क्रियाएँ अपूर्ण अकर्मक क्रिया की कोटि में रखी जाती हैं। उदाहरण — मैं सुन रही हूँ।

सकर्मक क्रिया — ‘स’ का अर्थ है — सहित। कर्म सहित क्रिया सकर्मक होती है। जिस क्रिया का प्रभाव पहले कर्म पर पड़ता है, फिर कर्ता पर, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं। क्रिया पहले कर्म से जुड़ती है, फिर कर्ता से। उदाहरण — विद्यार्थी परीक्षा देते हैं। — ‘देते हैं’ क्रिया पहले कर्म ‘परीक्षा’ से जुड़ रही है, फिर ‘विद्यार्थी’ कर्ता से।

सकर्मक क्रिया के तीन प्रकार होते हैं — १. एक कर्मक। २. द्वि कर्मक। ३. बहुत कर्मक।

एक कर्मक क्रिया :- जिस क्रिया में केवल एक कर्म हो, वह एक कर्मक कहलाएगी। जैसे — बालिका खेल खेलती है।

द्वि कर्मक क्रिया :- जिस क्रिया में दो कर्म हों, वह द्वि कर्मक कहलाएगी। जैसे — बालिका सहेली को खिलौने देती है। पहला व मुख्य कर्म ‘खिलौने’ ; दूसरा व गौण कर्म ‘सहेली को’।

बहु कर्मक क्रिया :- जिस क्रिया में दो से अधिक कर्म हों, उसे बहुत कर्मक की श्रेणी में रखा जाता है। जैसे — बालिका सहेली को खेलने के लिए खिलौने देती है। अन्य उदाहरण — चित्रकार तूलिका से आजीविका के लिए घोड़े का चित्र बनाता है।

अन्य भेद — कर्म की प्रधानता के अतिरिक्त रचना के आधार पर भी क्रिया के कुछ भेद किए गए हैं ।

१. सामान्य क्रिया — जिस क्रिया में वाक्य के अंत में केवल एक क्रिया आए तथा उस एक क्रिया से ही वाक्य पूरा हो जाए, उस क्रिया को सामान्य क्रिया कहते हैं। सामान्य क्रिया को सरल क्रिया भी कहा जाता है। उदाहरण – वह आया। तुम बैठो। कैसे हो ? कहाँ चले ?

२. संयुक्त क्रिया — जब दो या दो से अधिक क्रियाएँ मिलकर एक क्रिया की रचना करें, तब उस क्रिया को संयुक्त क्रिया कहा जाता है। जैसे — पंखा चल रहा है। पंखा चला दो। वह चलता चला जा रहा है।

संयुक्त क्रिया में निम्नलिखित भाग होते हैं :-

१. मुख्य क्रिया — सबसे पहली क्रिया मुख्य क्रिया होती है। जैसे — चल, चला, चलता आदि ( उपर्युक्त उदाहरणों से ) ।

२. सहायक क्रिया — संयुक्त क्रिया में सबसे अंत में आने वाली ‘है’ , ‘था’ आदि क्रियाएँ सहायक क्रियाएँ कहलाती हैं।

३. रंजक क्रिया — इन दोनों क्रियाओं के अतिरिक्त बीच में आने वाली सभी क्रियाएँ ‘रंजक’ क्रियाएँ कहलाती हैं। रंजक क्रिया मुख्य क्रिया को प्रभावित करती है ; उसे न‌ए रंग में रंग देती है ; उसे और सुंदर बना देती है। व्याकरण में सबसे अच्छी रंजक क्रिया ‘सकना’ को माना गया है।

उदाहरण — मैंने लिखा है। — लिखा – मुख्य क्रिया ; है– सहायक क्रिया।

मैंने लिख लिया है।– लिख- मुख्य क्रिया ; लिया- रंजक क्रिया ; है- सहायक क्रिया। ‌‌

मैं लिखती जा रही हूँ।– लिखती- मुख्य क्रिया ; ‌‌‌‌‌‌‌जा- प्रथम रंजक क्रिया ; रही- द्वितीय रंजक क्रिया ; ‌‌‌‌‌ हूँ- सहायक क्रिया।

३. पूर्वकालिक क्रिया — किसी वाक्य में जब एक क्रिया समाप्त होकर तुरंत दूसरी क्रिया आरंभ होती है, तब पहले वाली क्रिया पूर्वकालिक क्रिया कहलाती है।

उदाहरण — वह उठकर बैठा। – उठकर- पूर्वकालिक क्रिया। ‌‌‌‌वह मुझे ‌‌‌‌‌‌‌‌बोलकर गया।- बोलकर- पूर्वकालिक क्रिया।

( टिप्पणी – पूर्वकालिक क्रिया तथा सहयोगी क्रिया साथ-साथ आनी चाहिए। दोनों के बीच कोई अन्य व्याकरणिक पद नहीं आना चाहिए। जैसे – बोलकर गया- ✓ । झुककर प्रणाम किया- × । )

४. प्रेरणार्थक क्रिया — जिस वाक्य में कर्ता द्वारा किसी अन्य को कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाता है, उस वाक्य में जिस क्रिया का प्रयोग होता है, उसे प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं। दूसरे शब्दों में जब कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी अन्य से कार्य करवाता है, तब प्रयोग होने वाली क्रिया प्रेरणार्थक क्रिया कहलाती है।

उदाहरण — अदिति छात्राओं से नृत्य करवाती है। – करवाती- प्रेरणार्थक क्रिया।

ठेकेदार ने मजदूरों से बोझा उठवाया। – उठवाया – प्रेरणार्थक क्रिया।

प्रेरणार्थक क्रिया के दो रूप होते हैं — प्रथम प्रेरणार्थक तथा द्वितीय प्रेरणार्थक। उदाहरण — सोना/ सुलाना/ सुलवाना। खाना/ खिलाना/ खिलवाना। मिलना/ मिलाना/ मिलवाना।

५. तात्कालिक क्रिया — जब एक क्रिया के पूरी होते ही दूसरी क्रिया आरंभ हो जाए, तो पहले वाली क्रिया तात्कालिक क्रिया कहलाती है।

उदाहरण– वह चलते-चलते रुक गया। – चलते-चलते। ‌‌ मशीन आते-आते रह गई। – आते-आते। ‌‌

६. नामधातु क्रिया — जो क्रियाएँ संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि से बनती हैं, उन्हें नामधातु क्रिया कहते हैं। जैसे — बात- बतियाना। हाथ- हथियाना। लाज- लजाना। गर्म- गर्माना।

७. अनुकरणात्मक क्रिया — जो क्रियाएँ पशु-पक्षियों की ध्वनियों, प्राकृतिक दृश्यों, मानवीय प्रतिक्रियाओं आदि के आधार पर बनाई गईं हैं, उन्हें अनुकरणात्मक क्रियाएँ कहते हैं। उदाहरण – हिनहिनाना, रंभाना, भौंकना, मिमियाना, दहाड़ना, चिंघाड़ना, चहचहाना ( पशु-पक्षियों की ध्वनियाँ ) टिमटिमाना, चमचमाना, ( प्राकृतिक दृश्य ) गिड़गिड़ाना, बड़बड़ाना, चौंधियाना, तमतमाना, कसमसाना, बिलबिलाना ( मानवीय गतिविधियाँ )

८. क्रिया का एक प्रकार यह भी है — ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌होते ही दूँगा। आते ही गया। बैठते ही बोला। ‌‌‌कहते ही उठा।

धातु — क्रिया के मूल रूप अर्थात् सबसे छोटे रूप को धातु कहा जाता है। धातु के और छोटे खंड नहीं किए जा सकते। जैसे — खा, पी, हो, सो, देख, चल आदि।

क्रिया के पाठ में यहीं तक। विद्यार्थी अधिक जानकारी के लिए कृपया उत्तम गुणवत्ता की‌ व्याकरण पुस्तकों से पाठ देखें।

…. श्री ….

इस लेख में प्रयोग की गई दोनों छवियाँ पिक्साबे साइट से साभार उद्धरित की ग‌ईं हैं।

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