ज्ञानकट्टा

संज्ञा ( व्याकरण से आंशिक )

प्रस्तुत चित्र को हमने ‘पिक्साबे’ साइट से साभार उद्धरित किया है।

संज्ञा किसे कहते हैं ? क्या नाम संज्ञा है ? या वह वस्तु जिसे उस नाम से पुकारा जा रहा है ? या फिर वह स्थान जिसे‌ उस नाम से पुकारा जाता है।‌‌ बड़ी साधारण सी परिभाषा है। किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान अथवा भाव के नाम को संज्ञा कहते हैं। थोड़ा ध्यान से‌ पढ़िए। बच्चो! अपनी काॅपी में पूरी परिभाषा लिख लो और ‘भाव के’ तक मिटा दो। अब बचे हुए आधे भाग को पढ़ो। क्या मिला ? ‘नाम को संज्ञा कहते हैं।’ अर्थात् कोई व्यक्ति, वस्तु, स्थान आदि संज्ञा नहीं है। संज्ञा तो वह‌ नाम है, जो पहचान सिद्ध करने को दिया जाता है।

तो इस प्रकार संज्ञा ‘नाम’ है; ‘पहचान’ है; ‘परिचय’ है । किसी भी व्यक्ति, वस्तु, प्राणी अथवा स्थान का प्रथम परिचय हमें उसके नाम से ही मिलता है। शेष परिचय बाद में होता है।

संज्ञा के भेद :- मूल रूप से संज्ञा के तीन भेद हैं :- व्यक्तिवाचक, जातिवाचक, भाववाचक।

व्यक्तिवाचक संज्ञा — जो संज्ञा व्यक्ति विशेष ( एक व्यक्ति ), वस्तु विशेष ( एक वस्तु ), प्राणी विशेष ( एक प्राणी ), स्थान विशेष ( एक स्थान ) का परिचय दे, उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे — आर्यभट्ट, चाणक्य, अर्थशास्त्र, रामचरितमानस, नंदी बैल, कामधेनु, हिमालय, मानसरोवर आदि।

जातिवाचक — जिस संज्ञा पद (शब्द) से व्यक्ति, वस्तु, स्थान, प्राणी आदि की पूरी जाति का परिचय प्राप्त होता होता हो, उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं। ( नोट– संज्ञा ‘जाति’ वाचक है, ‘जाती’ वाचक नहीं। ‘जाती’ एक क्रिया है। ) उदाहरण — स्त्री-पुरुष, लड़का-लड़की, पशु-पक्षी, नदी, पहाड़, जंगल, देश, राज्य, नगर आदि।

भाववाचक संज्ञा — जिन संज्ञाओं से मन के भावों, स्थिति, दशा, अवस्था, स्पर्श, स्वाद, गंध आदि का ज्ञान होता हो, वो सब भाववाचक कहलाती हैं। जैसे — हँसी, क्रोध, कठोरता, कोमलता, बचपन,‌‌ यौवन, शांति, कोलाहल, खटास, मिठास, सुगंध, दुर्गंध आदि।

विशेष — जब कोई जाति सूचक नाम किसी‌ एक व्यक्ति के लिए प्रयोग हो, तो‌ वह व्यक्तिवाचक संज्ञा हो जाता है। जैसे– दादी माँ मुझे शापभ्रष्ट देवी – सी लगीं। — यहाँ ‘दादी माँ’ व्यक्तिवाचक संज्ञा है।

इसी प्रकार जब किसी एक व्यक्ति का नाम समाज के किसी गुण को दर्शाने के लिए हो, तो उसे जातिवाचक संज्ञा माना जाएगा। जैसे — नारी ही यशोदा है और नारी ही कैक‌ई। — यहाँ ‘यशोदा’ और ‘कैक‌ई’ नारी के गुणों का प्रतीक हैं। अतः ये दोनों जातिवाचक संज्ञाएँ हैं।

तीसरे, भाववाचक संज्ञाएँ जब बहुवचन में प्रयोग हों, तो वे जातिवाचक का रूप ले लेती हैं। जैसे — बुराइयों, सफलताओं आदि।

संज्ञा में यहीं तक। संज्ञा के संपूर्ण अध्ययन के लिए कृपया उत्तम गुणवत्ता की‌ व्याकरण पुस्तकों से पढ़ें।

….. श्री …..

इस अंक का दूसरा चित्र भी समान रूप से पिक्साबे साइट से साभार उद्धरित है।

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