उपसर्ग व प्रत्यय (व्याकरण से आंशिक)

पिछली कड़ियों में हमने व्याकरण के कुछ विशेष पक्षों पर आपका ध्यान आकर्षित किया। आज की कड़ी में हमने उपसर्ग तथा प्रत्यय का पाठ चुना है।

यदि हम परिभाषाओं को ध्यान से समझें, तो उपसर्ग वे शब्दांश हैं, जो किसी शब्द से पहले जुड़ कर उसके अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं। दूसरी ओर प्रत्यय वे शब्दांश हैं जो किसी शब्द के बाद लग कर उसके अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं।

हम पहले उपसर्ग की बात करते हैं। उपसर्ग स्वर या व्यंजन का‌ मेल नहीं, ये पूरे शब्दांश हैं। जब उपसर्ग के नाम पर केवल ‘अ’ लगाकर मूल शब्द का विपरीत बना दिया जाता है, तब आश्चर्य होता है। जैसे- स्वस्थ –> अस्वस्थ। पर उपसर्ग का कार्य ही यही है। जैसे – अन –>सुना= अनसुना। उप–> नयन= उपनयन।

हमें ध्यान रखना चाहिए कि कोई भी उपसर्ग शब्द के आगे जुड़कर नया शब्द बनाए, न कि अटपटा लगे। उचित उपसर्गों व शब्दों के मेल का ध्यान रखना आवश्यक है। बेचिंता, निफिक्र, अचिंत, बेफ़िज़ूल, बेफ़ालतू आदि अनुचित प्रयोग हैं।

कभी-कभी शब्दांश व मूल शब्द का मेल होते समय संधि के नियम भी काम करते हैं। जैसे– अति–> अधिक= अत्यधिक (स्वर (यण) संधि)। इसी प्रकार उत्–>ज्वल= उज्ज्वल (व्यंजन संधि)।

कुछ उपसर्ग स्वतंत्र शब्द भी होते हैं। जैसे– अतः, प्रातः, स्व, प्रति, आदि। इनका प्रयोग स्वतंत्र रूप में भी होता है।

अब प्रत्ययों की बात करते हैं। प्रत्यय शब्द के पीछे जुड़ने वाले शब्दांश होते हैं। इनका प्रयोग अपेक्षाकृत सरल व सुबोध है। जैसे– दूधवाला–> ‘दूध’ तथा ‘वाला’ एकदम अलग। कभी-कभी तो प्रत्यय पूरे शब्द भी होते हैं। जैसे इस ‘वाला’ शब्द को ही लीजिए– ‘वह वाला’ ।

प्रत्ययों में भी संधि के नियम काम करते हैं। जैसे– लेख –> अक= लेखक (स्वर (दीर्घ) संधि)। पाठक, दयालु, कृपालु आदि भी इसी प्रकार के शब्द हैं।

उपसर्ग व प्रत्यय दोनों के संबंध में एक और बिंदु महत्त्वपूर्ण है। वह यह कि शब्दांश व मूल शब्द दोनों एक ही समूह के हों; भिन्न-भिन्न नहीं। तत्सम् शब्दांश+तत्सम् मूल शब्द+तत्सम् शब्दांश। तद्भव शब्दांश+ तद्भव मूल शब्द+तद्भव शब्दांश। विदेशी भाषाएँ — समान भाषा शब्दांश तथा समान भाषा मूल शब्द।

उपसर्गों व प्रत्ययों के स्वरूपों एवं भंडार में समयानुसार विविध परिवर्तन आ ग‌ए हैं। हमारी स्मृतियों के अनुसार अस्सी-नब्बे के दशक तक ‘अ’, उत् , उद् , सत् , आदि उपसर्गों में नहीं गिने जाते थे। इसी प्रकार प्रत्ययों के क्रम में आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ आदि की मात्राओं को नहीं गिना जाता था। धीरे-धीरे ये सब उपसर्ग व प्रत्यय बन ग‌ए। आगे अन्य भी अपेक्षित व अनापेक्षित परिवर्तन आ सकते हैं।

आप सोचेंगे कि अधूरी जानकारी प्रस्तुत करने का क्या कारण हो सकता है ? इस का उत्तर यह है कि हम विषय के कुछ अनछुए पहलुओं को उठाते हैं। विषय की संपूर्ण जानकारी व्याकरण पुस्तकों में से ही मान्य है।

शेष अगली कड़ी में……

….. श्री …..

इस अंक के लिए ली गई छवि को हमने ‘पिक्साबे’ साइट से साभार उद्धरित किया है।

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