ज्ञानकट्टा

अभिवादन ! ( संक्षिप्त निबंध )

अभिवादन ! ( संक्षिप्त निबंध )

नमस्कार!

प्रणाम!

गुड मॉर्निंग!

आदाब!

सत् श्री अकाल!

तथा और भी न मालूम कितने प्रकार, प्रतिदिन, पहली बार मिलने वाले व्यक्ति का अभिवादन किया जाता है। बिना अभिवादन तो जैसे बातचीत आरंभ ही नहीं हो पाती। यदि अत्यधिक क्रोध में न भरें हो, तो मात्र क्रोधाग्नि की ज्वाला को छोड़ शेष सभी परिस्थितियों में वार्तालाप का बीजारोपण अभिवादन से ही होता है।

वास्तव में अभिवादन अन्य के प्रति हमारे प्रेम तथा विनम्रता की अभिव्यक्ति होती है। अभिवादन करते ही दोनों पक्षों के मन के कलुष कुछ सीमा तक कम हो जाते हैं। धैर्य पूर्वक किया गया अभिवादन अन्य के हृदय में हमारे प्रति यथायोग्य प्रेम व आदर-सम्मान को बढ़ा देता है।

यदि एक बार अभिवादन करने से सम्मान मिलता है, तो सोचिए, यदि प्रतिदिन मिलने वाले का सम्मान किया जाए, तब कितना प्रेम, आदर व सम्मान हमारे अधिकार में स्वत: आ जाएगा। अभिवादन के पंथ, संप्रदाय, प्रांत, भाषा आदि के आधार पर अनेक रूप हैं, परंतु सबका अभिप्राय समान है। यदि उत्तर प्रदेश में ‘नमस्कार’ के लिए दोनों हाथों को जोड़ा जाता है, तो तमिलनाडु में भी ‘वाणक्कम’ दोनों हाथों को जोड़कर ही किया जाता है। ‘आदाब’ अथवा ‘अस्सलाम वालेकुम’ में हथेली को कुछ प्राप्त करने की मुद्रा में माथे के निकट ला कर सिर को झुका कर बंदा सामनेवाले की सलामती तथा अल्लाह-तालाह के रहमो-करम बने रहने की दुआ माँगता है। बदले में उसे भी नेक दुआएँ मिलती हैं। ‘गुड मॉर्निंग’ करते हुए अनायास ही मुख पर मुस्कराहट खिल उठती है। सामने से भी मुस्कराती गुड मॉर्निंग सुनाई देती है।

जब आप नमस्कार करते हैं, तो दोनों हाथों को जोड़कर सिर को हलका झुकाते हैं, जिससे सामने वाला व्यक्ति आपके सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देता है। बिना कुछ कहे अपनी विनम्रता प्रकट हो जाती है तथा अन्य का आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है।

हमारे देश में पाँव छूना अभिवादन का सर्वश्रेष्ठ रूप हैं। उत्तर-पश्चिमी भारत, पश्चिमी भारत तथा उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में लड़कियों का पाँव छूना वर्जित है। ऐसे में वे इस सर्वश्रेष्ठ अभिवादन का लाभ केवल अपने विवाह के पश्चात् उठा पातीं हैं। हमें ऐसा प्रतीत होता है कि लड़कियों के पाँव छूने की परंपरा संपूर्ण भारत में विकसित होनी चाहिए।

अभिवादन स्वत: विनम्रता की शिक्षा देने वाली ऐसी रीति है, जिसे युगों-युगों तक ‘कुरीति’ नहीं माना जाएगा। यह सदा रीति बनकर ही हमारा पर आलोकित करती रहेगी।

….. श्री …..

इस अंक में ली गई दूसरी छवि को हमने पिक्साबे साइट से साभार उद्धरित किया है।

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