प्रिय विद्यार्थियो!
व्याकरण के पाठ्यक्रम में शब्द विचार में आपको तत्सम् एवं तद्भव शब्द पढ़ाए जाते हैं। तत्सम् शब्दों की यह परिभाषा आप पढ़ते हैं- “जो शब्द संस्कृत से सीधे बिना रूप परिवर्तन किए हिंदी में आ गए हैं, उन्हें तत्सम् कहते हैं।” जैसे- सूर्य, अग्नि, क्षेत्र, दुग्ध, दधि आदि। तद्भव शब्दों की यह परिभाषा आप पढ़ते हैं- “वे शब्द जिनका रूप संस्कृत से हिंदी में आते हुए थोड़ा परिवर्तित हो गया, उन्हें तद्भव शब्द कहते हैं।” जैसे- सूर्य से सूरज; अग्नि से आग; क्षेत्र से खेत; दुग्ध से दूध; दधि से दही आदि।
अब आप पाठ में दिए गए शब्दों को रट लेते हैं। कुछ ऐसे तत्सम् शब्द , जिनका कोई तद्भव आपको समझ नहीं आता, उनके अन्य समानार्थी अथवा पर्यायवाची आप लिख डालते हैं। आप तत्सम् तथा तद्भव के आपसी सामंजस्य को समझ ही नहीं पाते।
आज हम आपको तत्सम् तथा तद्भव शब्दों के बीच का तालमेल समझाने का प्रयास करते हैं। जैसा कि तत्सम् शब्द संस्कृत से सीधे हिंदी में आए हैं, तो उनका रूप नहीं बिगड़ा। केवल विसर्ग तथा हलंत हट गए हैं। जैसे संस्कृत में लिखा जाने वाला *सूर्य:* हिंदी में *सूर्य* लिखा जाता है। इसी प्रकार संस्कृत में *जलम्* हिंदी में *जल* है। कुछ शब्दों में तो यह परिवर्तन भी नहीं होता। जैसे- अत: , प्रातः , स्वयम् , सायम् आदि।
अब ऐसे ही जब तद्भव शब्द बनते हैं, तो उनका रूप बिगड़ता है – कभी थोड़ा तो कभी अधिक। *अग्नि* से *आग* बनते हुए; *दुग्ध* से *दूध* बनते हुए थोड़ा परिवर्तन होता है, परंतु *धर्म* से *धाम* ; *कर्म* से *काम*; *भ्राता* से *भाई* आदि बनने में अधिक परिवर्तन हो जाता है। परंतु किसी भी दशा में तद्भव की रूप-रचना तत्सम् से एकदम भिन्न नहीं हो सकती। उदाहरणार्थ – *जल* का तद्भव *पानी* ; *पवन* का तद्भव *हवा* ; *अश्व* का तद्भव *घोड़ा* तो कभी नहीं हो सकता।
आपको यह बिंदु समझना चाहिए कि तत्सम् से तद्भव बनाना पर्यायवाची लिखना नहीं है। लगभग समान अर्थ देने वाले शब्द पर्यायवाची कहलाते हैं।* तद्भव शब्द मूल तत्सम् शब्द का अपभ्रंश अर्थात् परिवर्तित या बिगड़ा रूप होता है। ठीक वैसे ही जैसे हम अपने परिवारों में सदस्यों के मूल नामों को बिगाड़कर बोलते हैं। विश्वेश्वर – बसेस्सर ; विश्वंभर – बिसंभर ; दमयंती – दमेन्ती ; लक्ष्मी – लछमी आदि। कभी-कभी तो तद्भव रूप का अर्थ तत्सम् रूप के अर्थ से एकदम भिन्न भी हो जाता है। जैसे- धर्म – धाम। कर्म – काम। अट्टालिका ( ऊँचा भवन ) – अटारी ( छत या छज्जा )। किन्तु किसी भी दशा में तद्भव की रूप-रचना तत्सम् से सर्वथा भिन्न नहीं हो सकती। (अपवादों को छोड़कर)।
अतः सदैव ध्यान रखिए कि तत्सम् से बना तद्भव अपने मूल शब्द से मिलता-जुलता होगा।
*एक शब्द के सभी पर्यायवाचियों के अर्थों में सूक्ष्म अंतर होता है।
….. श्री …..