शब्द रचना- अवसर तथा आवश्यकता के अनुकूल शब्दों का चुनाव हमें अजनबी बनने से बचाता है।
प्रिय विद्यार्थियो!
आज की कड़ी में हम शब्द रचना से जुड़े कतिपय व्याकरणीय बिंदुओं पर चर्चा करेंगे। वर्णों को जोड़ कर अक्षर बनते हैं। अक्षरों को उचित क्रम में रख तथा सुमेल कर अर्थपूर्ण शब्द की रचना होती है। एक ही प्रकार के अक्षर समूहों को भिन्न-भिन्न स्थान पर रख देने से भिन्न शब्द गढ़ जाता है। उदाहरण देखिए– कलम – कमल। -लड़की – लकड़ी। – प्रमाण – प्रणाम। – परिमाण – परिणाम। ऐसे अन्य भी अनेक शब्द हो सकते हैं। असंख्य शब्द ऐसे हैं, जिनका मूल शब्द रूप बहुत छोटा है तथा उसका अर्थ भी भिन्न है। जैसे ‘मन’। इसके अर्थ से हम सभी परिचित हैं। यह एक मूल शब्द माना गया है। इस शब्द से नए शब्द रचे जाने के क्रम में हमें प्राप्त होते हैं कतिपय ऐसे शब्द– मान,माना (क्रियाओं के अनेक रूप), सुमन, सम्मान, सम्मानित, सम्मानजनक, अपमान, अपमानित, अपमानजनक, अभिमान, अभिमानी, अभिमानिनी, स्वाभिमान, स्वाभिमानी, स्वाभिमानिनी, विमान, निर्माण (तत्सम् शब्दों में कहीं-कहीं ‘न’ ‘ण’ बन जाता है।), प्रमाण, परिमाण आदि-आदि।
मूल शब्द से एक नया शब्द निर्मित होने की प्रक्रिया केवल एक प्रकार की ही नहीं है। व्याकरण में विभिन्न नियमों के द्वारा नव शब्द निर्मिति होती है। मूल शब्द में उपसर्ग-प्रत्यय जोड़कर अथवा इन दोनों को एक साथ जोड़कर, स्वर, व्यंजन तथा विसर्ग संधियों द्वारा, समास के द्वारा समासित करके, क्रियाओं की रूप-रचना द्वारा, यहाँ तक कि मात्राएँ जोड़कर भी नए शब्द गढ़े जाते हैं। उत्पत्ति, रचना, प्रयोग तथा प्रकार्य के अनुसार भी अनेकानेक शब्द बने हैं। इन्हीं को हम व्याकरण के नियमों में पढ़ते हैं। यह तो अभी विकारी शब्दों तक सीमित है; आवश्यकता के अनुसार ऐसे शब्द भी गढ़ लिए गए हैं,जिनके रूप ही परिवर्तित नहीं होते। इन्हें हम अविकारी शब्दों में पढ़ते हैं। अतः भाषा के सम्यक अध्ययन के लिए हमें व्याकरण के नियमों को ध्यानपूर्वक समझना होगा।
आज की कड़ी में यहीं तक। शेष अगली कड़ी में …..
….. श्री …..
इस अंक के लिए ली गई छवि को हमने ’पिक्साबे’ साइट से साभार उद्धरित किया है।