पिछली कड़ी में हमने आपको अक्षरों की रचना व प्रकार समझाए तथा यह बताने का प्रयास किया कि हिंदी भाषा में हम क्यों अक्षरों का उच्चारण करते हैं व अक्षर ही लिखते हैं, वर्ण नहीं। इस अंक में हम आपको वर्णमाला के स्वरूप से परिचित कराएँगे।
हिंदी वर्णमाला पूर्णतः वैज्ञानिक वर्णमाला है, जो हमारे मुख के भीतरी उच्चारण अवयवों की गतियों को परखकर तैयार की गई है। जैसा कि हमें ज्ञात है– हिंदी का उद्भव संस्कृत के अत्यंत निकट है। अतः संस्कृत वर्णमाला के अनेक वर्ण साक्षात् हिंदी वर्णमाला में प्रविष्ट हुए हैं। जैसे– अ—-औ तक स्वर; अयोगवह (अंं – अ:) ; चवर्ग ; पवर्ग ; तवर्ग ; अंंतस्थ व्यंजन ( य, र, ल, व ) तथा ऊष्म व्यंजन ( श , ष , स , ह ) आदि। यद्यपि कुछ वर्ण प्रांतीय भाषाओं से लिए गए हैं तथा कुछ प्राचीन अपभ्रंशों से। जैैसे-
१. टवर्ग के सभी व्यंंजन राजस्थानी डिंगल-पिंगल अपभ्रंश से आए हैं।
२. कवर्ग के सभी व्यंजन ब्रज ( बृज ), खड़ी बोली आदि बोलियों की देन हैं, जो शौरसैनी अपभ्रंश से निकलीं हैं।
३. आज की वर्णमाला में लिखा जाने वाला *अ* तथा *झ* गुजराती से लिए गए हैं।
४. संयुक्ताक्षरों की रचना हिंदी-संस्कृत व्यंजनों के मेल से हुई है- जैसे- क्+ष्+अ= क्ष। ज्+ञ्+अ= ज्ञ। त्+र्+अ= त्र।
अब हम वर्णमाला के वर्णों को देखते हैं :-
स्वर – वर्णमाला में कुल ११ ( ग्यारह ) स्वर हैं, जिनमें *ऋ* संस्कृत स्वर है। इसका प्रयोग शुद्ध रूप से तत्सम् शब्दों में होता है — ऋषि , ऋजु आदि।
अयोगवह – अं , अ: । वर्णमाला में दो अयोगवह हैं। यह अर्द्ध स्वर भी कहलाते हैं।
व्यंजन – व्यंजनों का क्रम वर्णमाला में कुछ इस प्रकार है :-
१. कवर्ग , चवर्ग , टवर्ग , तवर्ग , पवर्ग — पाँच व्यंजन प्रति वर्ग अर्थात् २५ व्यंजन । उच्चारण स्थल के आधार पर इन्हें स्पर्श व्यंजन कहा जाता है।
२. य , र , ल , व – ये चार उच्चारण के आधार पर अंंत:स्थ व्यंजन कहलाते हैं।
३. श , ष , स , ह – ये चार व्यंजन उच्चारण के आधार पर ऊष्म ( उष्म ) व्यंजन कहलाते हैं।
४. इस प्रकार वर्णमाला में कुल ११ स्वर + २ अयोगवह + २५ स्पर्श + ४ अंत:स्थ + ४ ऊष्म + ४ संयुक्ताक्षर = ४९ वर्ण हैं।
५. इन वर्णों के अतिरिक्त *ऑ* एक आगत स्वर है , जिसका स्वर रूप में प्रयोग अंग्रेज़ी शब्दों – *कॉफ़ी* , *डॉक्टर* आदि बहुप्रचलितों में होता है।
६. जहाँ तक क़ , ख़ , ग़ , ज़ , फ़ व्यंजनों का प्रश्न है, तो ये सभी पृथक व्यंजन नहीं हैं। इनका प्रयोग अरबी-फ़ारसी ( उर्दू ) के शब्दों में होता है। देशज प्रभावों से इन्हें बिना नुक़्ता ( पैर की बिंदी ) भी प्रयोग किया जाता है। उदाहरण — काग़ज़ – कागज। फ़ुरसत – फुरसत , ख़ुश – खुश आदि-आदि।
७. *ड़* तथा *ढ़* भी पृथक व्यंजन नहीं हैं। शब्द के मध्य अथवा अंत में आने पर उच्चारण की सरलता हेतु इन्हें इस रूप में प्रयोग किया जाता है। यदि इनके पूर्व कोई पंचमाक्षर आ जाए, तो ये ज्यों के त्यों रहते हैं। उदाहरण — सड़क , कढ़ाई , डमरू , ढाई , पण्डित ( पंडित ) आदि। देशज प्रभावों से *ढाई* *अढ़ाई* भी हो जाता है।
आज के अंक में यहीं तक। शेष अगले अंक में…..
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