ज्ञानकट्टा

अपने वर्णों को जानें (अक्षरों की रीति)‌ व्याकरण से आंशिक

हिंदी भाषा अक्षर प्रधान अथवा अक्षरात्मक भाषा है। इसके शब्दों को लिखते समय हमें स्वरों को व्यंजनों में मिलाकर उचित अक्षर‌ बनाने पड़ते हैं। जब शब्द को तोड़ते हुए वर्ण-विच्छेद‌ किया ‌जाता है, तो‌ एक-एक वर्ण‌‌ (स्वर तथा ‌व्यंजन दोनों) एक‌ लिपि चिह्न के समान दिखाई पड़ता है। कोई भी वर्ण अक्षर नहीं होता; स्वर भी नहीं। उस समय उन्हें हम देवनागरी (हिंदी की लिपि) चिह्न कह सकते हैं; अक्षर अथवा‌ शब्द नहीं। अतः विद्यार्थी जब कभी भी वर्ण-विच्छेद का अभ्यास करें (परीक्षा कक्ष‌ के अतिरिक्त), तब उन्हें शब्दों को पहले अक्षरों में तोड़ना‌ चाहिए फिर वर्णों में। उसी प्रकार वर्ण-संयोजन का अभ्यास करते समय भी पहले वर्णों को अक्षरों में बदलें, फिर शब्दों में।इस प्रक्रिया को कुछ उदाहरणों से समझा जा सकता है–

शब्द = श + ब्द= (श् + अ) + (ब् + द् + अ) = (वर्ण-विच्छेद)

(व् + अ) + (र् + ण् + अ) = व + र्ण = वर्ण = (वर्ण-संयोजन)

विच्छेद = वि + च्छे + द = (व् + इ) + (च् + छ् + ए) + (द् + अ) = (वर्ण-विच्छेद)

(व् + आ) + (क् + य् + अ) = वा + क्य = वाक्य = (वर्ण-संयोजन)।

इस प्रकार विद्यार्थियों द्वारा स्वरों तथा ‌मात्राओं के चयन में त्रुटियाँ किए जाने की संभावना भी कम हो जाएगी।

स्वरों तथा व्यंजनों के मेल से अक्षर विविध रूपों में बनते हैं – १. संयुक्त व्यंजन – क्त, भ्य, स्त, व्य, स्व आदि-आदि। इन्हें हम पूर्ण रूप से अक्षर नहीं कह‌ सकते क्योंकि इनमें एक से अधिक व्यंजन जुड़े होते हैं। अतः इन्हें संयुक्त व्यंजन कहा जाता है।

२. द्वित्त्व व्यंजन – त्त, ल्ल, क्क, द्द, ब्ब, च्च आदि-आदि। इनकी स्थिति संयुक्त व्यंजनों जैसी ही है; एक व्यंजन दो बार साथ-साथ आता है। अतः इन्हें द्वित्त्व व्यंजन कहते हैं।

३. व्यंजन गुच्छ – लल्ला, दद्दा, कक्का, दद्दू, बब्बू आदि-आदि। इनमें संयुक्त तथा द्वित्त्व व्यंजनों के समानांतर स्थिति रहती है। अतः इन्हें भी अक्षर नहीं कहा जाता।

४. संयुक्ताक्षर – जब दो व्यंजन व ‘अ’ जुड़ कर यों एक हो जाते हैं कि उनका लिखित रूप ही नया बन जाता है, तब वे संयुक्ताक्षर कहलाते हैं। जैसे — क्ष, त्र,‌ ज्ञ, श्र आदि।

आज की कड़ी में यहीं तक। शेष अगले अंक में….

….. श्री …..

इस अंक के लिए ली गई छवि को हमने ‘पिक्साबे’ साइट से साभार उद्धरित किया है।

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