वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई है। वर्ण से तात्पर्य केवल लिखित भाषा से है। लिखते समय हम किसी ध्वनि का प्रयोग नहीं करते। कर ही नहीं सकते, क्योंकि ध्वनि का संबंध तो मुख से है। बोलते समय हम अपने कंठ की स्वर तंत्रियों को नियंत्रित कर विभिन्न ध्वनियाँ एक साथ उतार-चढ़ाव से बोलते हैं, जिसके परिणामस्वरूप भाषा का उच्चारण होता है। इस उतार-चढ़ाव को ‘अनुतान’ व नियंत्रण को ‘बलाघात’ कहा जाता है। अतः लिखते हुए हम संकेत चिह्नों अथवा लिपि चिह्नों का प्रयोग करते हैं।
हम पढ़ते हैं, वर्ण वह सबसे छोटी इकाई है; वह सबसे छोटा अंश है, जिसके और छोटे खंड नहीं किए जा सकते। इन्हीं वर्णों को विधिवत् परस्पर मिलाकर अक्षर, शब्द आदि बनते हैं। अर्थात् स्वरों तथा व्यंजनों के उचित मेल से शब्द प्राप्त होते हैं। हिंदी भाषा अक्षर प्रधान है। वर्णों अर्थात् स्वरों-व्यंजनों के विच्छेद तथा संयोजन को समझने के लिए हमें अक्षरों की रीति को समझना आवश्यक है।
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