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किगाली समझौता

किगाली समझौता

किगाली समझौता : खतरनाक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती पर ऐतिहासिक समझौता

– जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए
भारत सहित करीब 197 देशों ने जलवायु पर असर डालने वाले एचएफसी का इस्तेमाल कम करने के मुद्दों पर गहन चर्चाओं के बाद इस बारे में कानूनी रूप से बाध्य एक ऐतिहासिक समझौता किया। यह समझौता कानूनी रूप से बाध्यकारी है।
– एचएफसी यानी हाइड्रोफ्लोरो कार्बन ग्रीन-हाउस प्रभाव पैदा कर वायुमंडल का ताप बढाने के मामले में कार्बन डाइऑक्साइड से हजार गुना खतरनाक है।
– इन वार्ताओं में एचएफसी के इस्तेमाल को कम करने के लिए मांट्रियाल संधि में संशोधन के प्रस्ताव पर मतभेद दूर कर संबंधित किगाली संशोधन पर सहमति बनी।
– मांट्रियल प्रोटोकॉल में संशोधन के लिए यहां 197 देशों ने नया समझौता किया।
=>क्या खास है इस प्रोटोकॉल में :-
यह प्रोटोकॉल उन तत्वों से संबंधित है जिनके कारण ओजोन की परत कमजोर हो रही है।
इसके कमजोर पड़ते रहने से सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियत तक की वृद्धि हो सकती है। समझौते से इसपर रोक लगने की उम्मीद है।
देशों द्वारा मंजूर किए गए संशोधन के अनुसार विकसित देश एचएफसी के इस्तेमाल को पहले कम करेंगे जिसके बाद चीन और कई दूसरे देश ऐसा करेंगे।
इसके बाद भारत और दक्षिण एवं पश्चिम एशिया के नौ दूसरे देशों की बारी आएगी।
कुल मिलाकर समझौते के तहत 2045 तक एचएफसी के इस्तेमाल में 85 प्रतिशत की कमी करने की उम्मीद है।
– संशोधन एक जनवरी, 2019 से कार्यान्वित होगा लेकिन उसके लिए जरूरी है कि देशों या मांट्रियाल प्रोटोकॉल पक्ष रहे क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण संगठनों की ओर से कम से कम 20 अनुमोदन या स्वीकृति मिले।
– संशोधन के तहत एचएफसी के उत्पादन एवं इस्तेमाल को रोकने और फिर घटाने की खातिर देशों के लिए तीन अलग अलग कार्यक्रम तय किए गए हैं।
=>देशों को कितना लक्ष्य मिला :-
अमेरिका और यूरोप के नेतृत्व में विकसित देश 2011-13 की आधार रेखा पर 2036 तक एचएफसी के इस्तेमाल में 85 प्रतिशत की कमी लाएंगे।
दुनिया में एचएफसी का सबसे बड़ा उत्पादक देश चीन 2020-22 की आधार रेखा पर 2045 तक इसके इस्तेमाल में 80 प्रतिशत की कमी करेगा।
भारत 2024-26 की आधार रेखा पर एचएफसी के इस्तेमाल में 85 प्रतिशत की कमी करेगा। विकसित देश इसके लिए विकासशील देशों को और ज्यादा वित्तीय मदद उपलब्ध कराने पर भी सहमत हुए।
=>बाध्यता :-
पेरिस में जलवायु परिवर्तन को लेकर हुए समझौते के उलट मांट्रियल प्रोटोकॉल संशोधन कानूनी रूप से बाध्यकारी है।
भारतीय जलवायु विशेषज्ञों ने समझौते पर सहमति बनाने में भारत द्वारा निभायी गयी भूमिका की सराहना की है। मांट्रियाल प्रोटोकॉल को संशोधित कराने में महत्वपपूर्ण भूमिका निभाने के बाद भारत ने कहा कि हानिकारक एचएफसी के उत्सर्जन में कटौती समय से आरंभ कर देगा।
ये गैसें वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी करने में कार्बन डाईआक्साइड के मुकाबले हजार गुना ज्यादा क्षमता रखती हैं।
– भारत ने 2024-26 का बेसलाइन अपनाने और 2028 तक का फ्रीज ईयर अपनाने का रूख अख्तियार किया है

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